मंगलवार, 21 अक्तूबर 2008

आदमी

सोना जब
भट्टी मे तपता है
कुन्दन बनता है ,
और जब कसौटी
पर खरा उतरता है
उसका सही दाम लगता है
वाह रे !
मेरे देश ; यहाँ
जब कोई इंसान
तप कर
हर कसौटी पर
खरा उतरता है
वैज्ञानिक,साहित्यकार
समाजसेवी
यह कहो
कुछ न कुछ बनता है
कौडियों के दाम बिकता है ।

विजय गुप्ता 'अभय '

22 टिप्‍पणियां:

शेरघाटी ने कहा…

इस ब्लॉग पर आकर भावुक हो गया.तुमने जो पंक्तियाँ पिता के स्मरण में दर्ज की हैं.अत्यंत मार्मिक हैं.और पिता जी की ये कविता हमारी व्यवस्था का कडुआ सच है.
आशा की यहाँ स्व.विजय जी की कविताओं से परिचय मिलता रहेगा.

संत शर्मा ने कहा…

Hamari vyavastha ki kadwi sachchai ko baya karti rachna. Bahut umda.

मैं.... ने कहा…

कितना गहरा सोचने लगे हो अक्षय...
नज़र ना लगे मेरे भाई को..
अक्सर बचपन में आसमान में छिपे राज़ आप सुनते थे मुझको...
अब क्यों नहीं बरसते आसमाँ से.. आप देखो तो मैं कितना गरजता हूँ...
भेद कर रख दिया है तुम्हारे शब्दों ने...

डाॅ रामजी गिरि ने कहा…

बहुत ही मार्मिक और करारा व्यंग किया है बंधु ,हमारे भारत की विद्रूपित महानता पर...

GOPAL K.. MAI SHAYAR TO NAHI... ने कहा…

wah bahut hi achhi kavita hai aur bilkul haqeekat likhi hai iss kavita me..

अभिषेक मिश्र ने कहा…

Pita par kavita achi lagi aapki. Swagat.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

वाह क्या बेहतरीन Blog है
स्वागतम

शोभा ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर लिखा है। आपका स्वागत है।

एहसास ने कहा…

itna mehke jo yahaan,
us pushp ka aadhaar wo vriksh kaisa hoga?
jis nadiya ka jal itnaa meetha, us nadiya ka udgam kaisa hoga?
jhalak bhar dikhee uss vandaniy kee jab,
vishwaas hua, sona nahi ye paras hoga!
jo iss kalam ko akshay bana gaya,
yahi wo amrit kalash hoga!
yahi wo amrit kalash hoga!!

....akshay iss blog pe aake..aur tumhe-tumhare udgam ke shabd padkar jo ehsaas nikle,
bas ehsaas ne unhe hi likh diya....silsila banaye rakhna

....sadhuwaad!

...Ehsaas!

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

wah bhai wah,
kisi ne kaha hai

" BAP HAI TO SAPANE HAI, BAZAR KE SAARE KHILONE APNE HAI"

Amit K Sagar ने कहा…

जैसा कि सबने बहुत कुछ कहा है; प्रिय अक्षय, मित्र आज माफ़ करो...शब्द कहीं खो गये हैं...तलाशता हूँ इन्हें तब तक तुम अपना ख्याल रखो...
---
अमित के. सागर

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

नारदमुनि ने कितना सही कहा है कि
पिता हैं तो सपने हैं
बाजार के सारे खिलौने अपने हैं

शेष तो
बस्स
आपके लिये शुभकामनाएं

gyaneshwaari singh ने कहा…

बस मेरे मे ही सीमित है आपके रूप का हर रंग
अपने जिस्म के हर हिस्से को आपमे ही बसाता हूं


kitne dil se likhe shabd....bhavnaye bikhari hai yahan...kya kahun smajh nai pa rahi bas yahi kahungi apke papa jahan kahin ho apke upar sada apna ashirwaad barsaye..

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सुन्दर रचना है।बधाई।

seema gupta ने कहा…

"kuch na kuch bntaa hai, kaudeeyon ke daam bikta hai..."

" very emotional words full of real fact of life"

regards

शोभित जैन ने कहा…

बहुत ही करारा व्यंग किया है,
Sadubaad

sanjay jain ने कहा…

मित्र जितना सुंदर ब्लॉग है उतने सुंदर व्यंग / जब सतयुग में सीता जैसी पवित्र नारी की लोगों ने अग्नि परीक्षा लेने के बाद भी उस पर कलंक लगा दिया तो आप और हमारा क्या / यह कलयुग है / परन्तु फ़िर भी मेरा विचार है कि जब पंछी ने चहकना नहीं छोड़ा , फूलो ने महकना नहीं छोड़ा तो फ़िर अपन क्यों मानवता को छोड़े / मेरे अपने ब्लॉग पर आज हसरी हनुमान सिंह गुर्जर की रचना जो मुनि तरुण सागर जी के स्वास्थ्य कामना हेतु लिखी है पड़ने का कष्ट करें / मुझे आपका ब्लॉग बहुत सुंदर लगा मैं भी अपने ब्लॉग को सुंदर बनाना चाहता हूँ उचित मार्ग दर्शन प्रदान करें /

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह ने कहा…

प्यारे अक्षय ,
तुम तो बस कमल करते जा रहे हो ,मेरी ऑंखें नम कर दी तुमने /क्या कहूं तुम वाकई प्रतिभा का ज्वलंत पुंज हो /मेरा प्यार ,बधाई और हाँ ,मुझ से ९४२५८९८१३६ पर बात करो,इन्तेजार करूंगा
तुम्हारा ही डॉ. भूपेन्द्र

Urmi ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना लिखा है आपने! क्या ये पेंटिंग आपने बनाया है?

अजित वडनेरकर ने कहा…

बढ़िया रचनाएं...करारा व्यंग्य ...
स्वागत है....

ज्योति सिंह ने कहा…

side me jo kavita papa ke liye likhi hai use padhkar aankhen bhar gayi .bahut dard bhara hai isme saath hi ye rachanaa bhi shaandaar hai .jordaar vyang .

निर्झर'नीर ने कहा…

marmik abhivyakti