भट्टी मे तपता है
कुन्दन बनता है ,
और जब कसौटी
पर खरा उतरता है
उसका सही दाम लगता है
वाह रे !
मेरे देश ; यहाँ
जब कोई इंसान
तप कर
हर कसौटी पर
खरा उतरता है
वैज्ञानिक,साहित्यकार
समाजसेवी
यह कहो
कुछ न कुछ बनता है
कौडियों के दाम बिकता है ।
कुन्दन बनता है ,
और जब कसौटी
पर खरा उतरता है
उसका सही दाम लगता है
वाह रे !
मेरे देश ; यहाँ
जब कोई इंसान
तप कर
हर कसौटी पर
खरा उतरता है
वैज्ञानिक,साहित्यकार
समाजसेवी
यह कहो
कुछ न कुछ बनता है
कौडियों के दाम बिकता है ।
विजय गुप्ता 'अभय '